घूमता हूँ मै अकेला ग़म के मारों की तरह।
ज़िंदगी तेरे बिना लगती है ख़ारों की तरह ॥
चोट करती हैं तेरी यादों कि लहरें रात दिन,
टूटता रहता हूँ दरिया के किनारों की तरह॥
हो रही बरसात मुझपे रौशनी की आजकल,
आप आए ज़िंदगी मे चाँद-तारों की तरह॥
खिल गईं है सारी कलियाँ मुस्कराया ये चमन ,
जब से आयें हैं वो गुलशन मे बहारों की तरह॥
वो तुझे कुछ भी कहे “सूरज”, मगर
मेरे लिए,
है तेरा एहसास सावन की फुहारों की तरह॥
डॉ॰ सूर्या बाली “ सूरज”