गुलशन से बहारों के नज़ारे कहाँ गए।
वो कहकशां वो चाँद सितारे कहाँ गए॥
अब नींद भी आती नहीं बेचैन बहुत हूँ,
पलकों से हसीं ख़्वाब हमारे कहाँ गए॥
दिल आज भी रहता है उन्ही की तलाश में ,
बचपन के अपने दोस्त वो सारे कहाँ गए॥
अलसाया सा गुलशन है और फूल हैं उदास,
ये भौरे तितली बाग़वाँ सारे कहाँ गए॥
दिखते नहीं पतिंगे जो दीवाने थे तेरे
शम्आ तुम्हारे प्यार के मारे कहाँ गए॥
था मैक़दा आबाद कभी जिनसे रात दिन ,
साक़ी बता वो रिंद बेचारे कहाँ गए ॥
जिनपे बड़ा गुमान था “सूरज” तुम्हें कभी,
वो मिलने जुलने वाले तुम्हारे कहाँ गए॥
डॉ॰ सूर्या बाली "सूरज"