खिड़कियाँ खुलते ही आते हैं हवा के झोंके।
राज़ दुनिया का बताते हैं हवा के झोंके॥
सुर्ख़ होठों की नमी, लाली बचाकर रखना,
रंग धीरे से चुराते हैं हवा के झोंके॥
गीत गाते हैं सुनाते हैं वफ़ा के नगमें,
आग हर दिल में लगाते हैं हवा के झोंके॥
ये कभी लगते हैं अपनों से कभी ग़ैरों से,
हर खुशी ग़म को निभाते हैं हवा के झोंके॥
बदन की ख़ुशबू और यादें तेरी लाते हैं,
तुमको छू छू के जो आते है हवा के झोंके॥
दर्द की रातों मे,तनहाइयों के मौसम में,
चैन की नींदें सुलाते हैं हवा के झोंके॥
सबको दे करके ये पैगाम-ए-मोहब्बत "सूरज"
दिये नफ़रत के बुझाते हैं हवा के झोंके॥
डॉ॰ सूर्या बाली "सूरज"