कुछ इस तरह से हमने बसर ज़िंदगी किया॥
ख़ुद को जला के सबके लिए रौशनी किया॥
क़ाबा भी मिल गया वहीं काशी भी मिल गई,
हमने खुलूसे-दिल से जहां बंदगी किया॥
कल रात दोस्तों कि थी महफिल सजी हुई,
ले ले के नाम तेरा बहुत दिल्लगी किया॥
नाराज़ किसलिए है तू कुछ तो बता मुझे,
क्या बात है जो मुझसे बहुत बेरुख़ी किया॥
“सूरज” हमें तो खार मिले फूल की जगह,
गुलशन से हमने जब भी कभी दोस्ती किया॥
डॉ. सूर्या बाली “सूरज”