कल भी हम साथ रहें ये कोई ज़रूरी नहीं।
हाथों मे हाथ रहें ये कोई ज़रूरी नहीं।।
तू तो धड़कन की तरह दिल में बसी हो मेरे,
इसका इज़हार करूँ ये कोई ज़रूरी नहीं।।
एक ही आबो-हवा, एक ही चमन फिर भी,
हर कली फूल बनेगी, कोई ज़रूरी नहीं।।
वो तो हर शय मे है, चाहे जहाँ पुकारो उसे,
सर झुके बुत के ही आगे कोई ज़रूरी नहीं।।
ग़म भुलाने के तरीक़े तो और हैं साक़ी,
जाम पीके ही भुलाऊँ कोई ज़रूरी नहीं।।
सभी तो राह मे हैं अपनी अपनी मंज़िल के,
सबको हो जाएगी हासिल, कोई ज़रूरी नहीं।।
इतनी आसानी से “सूरज” यकीन मत करना,
सब तेरे दोस्त ही हों, ये कोई ज़रूरी नहीं।।
डॉ॰ सूर्य बाली “सूरज”