कर ली आंखे चार तो फिर डर काहे का।
सच्चा अपना प्यार तो फिर डर काहे का॥
इन रिश्ते नातों, रस्मों से क्या लेना,
हम दोनों तैयार तो फिर डर काहे का॥
हमको कोई रोक सके दम किसमें है,
तोड़ी हर दीवार तो फिर डर काहे का॥
सारे जग के आगे अपने प्यार का तुमसे,
कर डाला इज़हार तो फिर डर काहे का॥
अब चाहे ये जग रूठे या रब रूठे,
छोड़ दिया घर बार तो फिर डर काहे का॥
प्यार किया तो मरने से फिर क्या डरना,
मरना सबको यार तो फिर डर काहे का॥
रौशन होगी प्यार की राहें तेरी अब,
“सूरज” तेरा यार तो फिर डर काहे का॥
डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”