कभी जब दिल से दिल का कोई रिश्ता टूट जाता है॥
तो फिर लम्हों में सदियों का भरोसा टूट जाता है॥
भले जुड़ जाये समझौते से पहले सा नहीं रहता,
मुहब्बत का अगर इक बार शीशा टूट जाता है॥
क़ज़ा की आंधियों के सामने टिकता नहीं कोई,
सिकंदर हो कलंदर हो या दारा टूट जाता है॥
कभी हिम्मत नहीं हारा जो मीलों मील उड़कर भी,
कफ़स में क़ैद होकर वह परिंदा टूट जाता है॥
मियाँ मजबूरियाँ हमको बनाती बेवफ़ा भी हैं,
पड़ी हो माँ अगर बीमार वादा टूट जाता है॥
बिमारी से नहीं पर भूँक से मरते मरीजों को ,
तड़पता देख के अब तो मसीहा टूट जाता है॥
यूं चलना चाहते तो है सभी राहे सदाक़त पर,
मगर भूंखे हो बच्चे तो इरादा टूट जाता है॥
हँसी होठों पे रखता है हजारों ज़ख्म खाकर भी,
मगर अंदर ही अंदर से दिवाना टूट जाता है॥
हो “सूरज” हौसला दिल में तो मंज़िल मिल ही जाएगी,
जो मौजें सर पटकती हैं किनारा टूट जाता है॥
डॉ. सूर्या बाली “सूरज”