आँख सोती नहीं तो यूं कर दे।
उम्र भर रतजगे का मंज़र दे॥
जंग तन्हाइयों से लड़नी है ,
उसकी यादों का एक लश्कर दे॥
बेरुख़ी, ज़ुल्म और नफ़रत दी,
प्यार थोड़ा सा ऐ सितमगर दे॥
गुल खिलाकर तुझे दिखाऊँगा,
आजमा ले, ज़मीन बंजर दे॥
तिश्नगी जो बुझा सके मेरी,
अबतो होठों को ऐसा सागर दे॥
क्या करूंगा मैं लेके शीश महल,
जो मेरा था मुझे वही घर दे॥
कारवां ज़िंदगी का भटका है,
राहे मुश्किल में कोई रहबर दे॥
उसके जूड़े की शान बन जाऊँ,
फूल जैसा मुझे मुकद्दर दे॥
धूप खुशियों की कर अता “सूरज”
सबके चाहत की झोलियाँ भर दे॥
डॉ. सूर्या बाली “सूरज”