तेरा ख़्याल दिल से निकलता नहीं है।
तेरे बिन मेरा दिल बहलता नहीं है॥
ये बादल, ये बारिश, ये बिजली, हवाएँ,
इन्हें देखके दिल सम्हलता नहीं है॥
कहाँ से निभाऊँ ज़माने की रस्में,
मेरा ख़ुद पे ही ज़ोर चलता नहीं है॥
तड़प, प्यास, आँसू मेरे देख करके,
तेरा संगदिल क्यूँ पिघलता नहीं है॥
सजे हैं इन आँखों में सपने तुम्हारे,
कोई दूसरा ख़्वाब पलता नहीं है॥
यहाँ सिर्फ़ होती हैं बारिश ही बारिश,
इन आँखों का मौसम बदलता नहीं है॥
तेरे हुस्न की शोख़ जादूगरी से,
मैं कैसे कहूँ दिल मचलता नहीं है॥
चमकता रहेगा जहाँ में हमेशा,
मुहब्बत का “सूरज” है ढलता नहीं है॥
डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”