इक बार जो उनके चेहरे से, लिल्लाह ये परदा टल जाये।
दीदार चाँद का हो जाये, सारा आलम ही बदल जाये॥
उनके हसीं रुख़सार पे अब, ज़ुल्फों की क़यामत तो देखो,
लहराती हैं काली नागन सी, पुरवाई हवा जब चल जाये॥
मजनूँ, फरहाद औ रांझा के जैसे परवाने आएंगे,
लैला, शीरी और हीर सी गर, कोई जो शमअ जल जाये॥
साक़ी मुझको भी पिला दे जरा ये सुर्ख़ लबों के पैमाने,
थोड़ा सा बेख़ुद हो जाऊँ और दिल थोड़ा सा बहल जाये॥
अरमान मेरा बस इतना है, आरजूँ नही कोई और ख़ुदा,
बस हुस्न के आँचल मे जाके, ये इश्क़ का “सूरज” खिल जाये॥
डॉ॰ सूर्या बाली "सूरज"