इक नई दुनिया बसाना चाहता हूँ।
फिर से ख़ुद को आजमाना चाहता हूँ॥
छोड़ के दुख दर्द के किस्से पुराने,
आज मैं फिर मुस्कराना
चाहता हूँ॥
इक मोहब्बत की गज़ल फिर गुनगुनाकर,
दर्दे-दिल अपना सुनाना चाहता हूँ॥
कर लिया बर्बाद ख़ुद को ग़म में तेरे,
अब तुझे मैं भूल जाना चाहता हूँ॥
फूँक कर ख़त, फूल, तोहफे दोस्ती के,
तेरी यादों को मिटाना चाहता हूँ॥
दूर तक फैले हैं नफ़रत के अंधेरे,
प्यार की शम्मा जलाना चाहता हूँ॥
हर गिले शिकवे भुलाकर आज “सूरज”,
फिर किसी से दिल लगाना चाहता हूँ॥
डॉ. सूर्या बाली “सूरज”