दुश्मनों तुम सरहदों के पार मत देखा करो॥
आँख
जल जाएगी ये अंगार मत देखा करो॥
ऐ
मसीहा इस तरह बीमार मत देखा करो॥
आदमी
में सिर्फ तुम आज़ार मत देखा करो॥
इश्क़
में दीवानगी रांझा के जैसी गर नहीं,
हुस्न
में फिर हीर जैसा प्यार मत देखा करो॥
चंद
सिक्कों के लिए ईमान बिक जाते यहां,
आजकल
के दौर का बाज़ार मत देखा करो॥
दिल
जिगर को चाक करती हैं अदाएं आपकी,
मुस्कुरा
के इस तरह सरकार मत देखा करो॥
दुश्मनों
से भी कभी जाके मिलो दिल खोलकर,
गुल
मिलेंगें बदले में या ख़ार मत देखा करो॥
बेबसी, बेचैनियाँ,
बेताबियाँ, तनहाईयाँ,
क्या
क्या दिल में हैं छुपाए यार मत देखा करो॥
ख़ून
मेरा भी बहा है इस वतन के वास्ते,
शक़
की नज़रों से हमें हर बार मत देखा करो॥
देख
करके मुश्किलें “सूरज” न हिम्मत हारना,
ढूंढ
लो रस्ता कोई दीवार मत देखा करो॥
डॉ. सूर्या बाली “सूरज”