उमीद, आरज़ू, अरमान, ख़्वाब तोड़ दिया।
अज़ीब मोड़ पे लाकर किसी ने छोड़ दिया॥
बहुत क़रीब था जब मेरे सफ़र में साहिल,
तभी भँवर ने सफ़ीने के रुख़ को मोड़ दिया॥
दिलो दिमाग से तेरे ही मैं नहीं निकला,
गली मोहल्ला शहर मुल्क तेरा छोड़ दिया॥
हबीब मुझको न समझा तो कोई बात न थी,
गिला यही के रक़ीबों में नाम जोड़ दिया॥
ज़हीन शख़्स ने मामूली बात को लेकर,
यतीम बच्चे का बेदर्दी से सिर फोड़ दिया॥
बयां न कर सका अफ़साना-ए-मोहब्बत मैं,
क़लम मे जितनी सियाही थी वो निचोड़ दिया॥
अदा से प्यार भी उसने जता दिया “सूरज”,
मिला के हाथ मेरी उँगलियाँ मरोड़ दिया॥
डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”
1. आरज़ू= चाह 2. अरमान=इच्छा 3. सफ़र=यात्रा 4. साहिल=किनारा 5. सफ़ीना= नाव
6. ज़हीन= पढ़ा-लिखा, बुद्धिमान 7. यतीम= अनाथ 8. हबीब=दोस्त, मित्र
9. गिला= शिकायत 10. रक़ीब= प्रतिद्वंदी, दुश्मन 11. दर= दरवाज़ा, चौखट