रात दिन जाने क्यूँ, करता हूँ बंदगी तेरी।
ख़ुद की लगने लगी है, अब तो ज़िंदगी तेरी॥
इक मुलाक़ात हुई क्या, बदल गया आलम,
अजीब नूर भर लायी है दोस्ती तेरी॥
जब भी डसती है तनहाई की नागन मुझको,
बहुत ही याद सताती है अजनबी तेरी।
दिल दिया इश्क़ मे,चैन और सुकूं भी गया,
अब मेरी जान भी, ले लेगी दिल्लगी तेरी॥
नाम दिवानों मे एक दिन तेरा होगा ‘सूरज”,
रंग लाएगी एक दिन ये आशिक़ी तेरी।।
-डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”